शरद पूर्णिमा 2023 में कब है, पूजा विधि, सामग्री,…
भारतीय कैलेण्डर विक्रम संवत के अनुसार वर्ष में कुछ खास तिथियां ऐसी होती है जो की बहुत ही शुभ होती है और इनका हिन्दू धर्म में बहुत ही खास महत्व होता है | प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को बहुत ही शुभ माना जाता है | आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को सभी पूर्णिमा तिथियों में श्रेष्ठ माना जाता है | शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा की जाती है | यह शुभ तिथि अतुलनीय फल दायी है और इसके करने से जीवन में सभी तरह के सुख और सम्पन्नता प्राप्त होती है |
जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तब समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी आश्विन पूर्णिमा के दिन ही निकली थी तभी से इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है | इस दिनचंद्र देव अपनी पूरी 16 कलाओं के साथ दर्शन देते है | शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर उसे चन्द्रमा के प्रकाश में रखा जाता है और उसका प्रसाद बांटा जाता है | यह मान्यता है की इस दिन चन्द्रमा की किरणों में अमृत होता है | जब वह खीर में गिरती है तो खीर विशेष गुणों से युक्त हो जाती है और इस खीर को खाने से आपका स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहता है और यह खीर आपके सौभाग्य में वृद्धि करती है |
शरद पूर्णिमा कब है
[contact-form-7 id="14022" title="Contact form 1"]भारतीय कैलेण्डर के अनुसार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है |
2023 में शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023 को है |
शरद पूर्णिमा पूजन सामग्री
सभी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा का बहुत ही महत्व होता है | लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है | माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा के लिए निम्नलिखित पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है –
- एक चौकी और उस पर बिछाने के लिए एक कपडा
- माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा
- एक कलश
- आम और आशा पाला के पत्ते
- पूजन के लिए थल
- रोली, मोली, चावल
- सुपारी
- पान के पत्ते
- भोग के लिए खीर
- पूजन के लिए घी का दीपक
- धुप और कपूर
शरद पूर्णिमा पूजन विधि
- शरद पूर्णिमा की पूजा के लिए पहले उत्तर या पूर्व दिशा में पूजन की जगह को साफ़ करें और धो कर उस स्थान पर स्वस्तिक बना कर चौकी बिछा दें |
- अब चौकी पर कपडा बिछाकर उस पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें |
- अब कलश स्थापित करें |
- सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें |
- उसके बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें |
- सबसे पहले माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को दूध, दही, शहद और गंगाजल से स्नान करवाएं |
- स्नान करवाने के बाद वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करें |
- माता लक्ष्मी को मधुपर्क अर्पित करें |
- आभूषण समर्पित करें |
- अपनी दाएं हाथ की अनामिका उंगुली से केसर से युक्त चन्दन अर्पित करें |
- सिंदूर, कुमकुम और इत्र अर्पित करें |
- चावल और दूर्वा समर्पित करें |
- धुप, दीप और नैवेद्य समर्पित करें |
- ऋतुफल, सुपारी और दक्षिणा पर अर्पित करें |
- अब सभी खड़े हो जाएं और माता लक्ष्मी की आरती गाएं |
- आरती के पश्चात सभी हाथ में चावल और फूल लेकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को पुष्पांजलि करें |
शरद पूर्णिमा का व्रत
शरद पूर्णिमा के व्रत के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें | साफ़ स्वच्छ कपडे पहनकर व्रत का संकल्प लें | शुभ मुहूर्त पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें | रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्य देकर चन्द्रमा की रौशनी में रखी खीर खाकर और भोजन करके अपना व्रत खोलें |
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन से ही भारत में शरद ऋतु का आरम्भ माना जाता है इस दिन से हल्की हल्की ठण्ड पड़ने लग जाती है | भारतीय त्योहारों में शरद पूर्णिमा का भी एक खास महत्व है और इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी तरह के दुःख कष्टों का निवारण होता है और घर में धन धान्य,समृद्धि होती है | शरद पूर्णिमा की रात्रि को चांदनी में खीर को रखा जाता है | मान्यता है ऐसा करने से खीर में अमृत्व का प्रभाव होता है और उस खीर को प्रातः खाने से शरीर के सभी तरह के रोग और व्याधि दूर हो जाते है |
शरद पूर्णिमा की कहानियां
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है मान्यता है की इस दिन चन्द्रमा की अद्भुत छठा के अंदर भगवान कृष्ण ने समस्त गोपियों के संग महारास रचाया था | इसके अलावा एक कथा शरद पूर्णिमा के साथ ओर जुडी हुई है | कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार रहता था | उस साहूकार के दो बेटियां थी |
दोनों बेटी सुन्दर और धार्मिक थी | हर पूर्णमासी पर दोनों व्रत रखती | उनमें से बड़ी बेटी हमेशा व्रत पुरे विधि विधान से करती जबकि छोटी बेटी उसे अधूरा ही उपवास करती | समय आने पर साहूकार ने अपनी बेटियों की शादी सुन्दर गुणवान युवकों से कर दी | शादी के उपरांत बड़ी बेटी जिसने पूर्णिमा के व्रत सही तरह से किये थे उसने स्वस्थ और और सुन्दर संतान को जन्म दिया और जो छोटी बेटी थी उसकी संतान जन्म लेते ही मर जाती |
ऐसे में उसका पूरा परिवार दुखी रहने लगा | जब उन्होंने एक पहुंचे हुए महात्मा से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया की यह सब अधूरे पूर्णिमा के व्रत का प्रभाव है | इसके कारन ही इसके बच्चे जन्म लेते ही मर जाते है | इसके बाद उन महात्मा ने उसे पूर्णिमा व्रत की विधि बताई और कहा की यदि शरद पूर्णिमा पर वह व्रत करेगी तो इसका उसे बहुत ही शुभ प्रति फल मिलेगा और उसकी सभी मनोकामना भी पूरी होगी |
उसने महात्मा के बताये अनुसार पूर्णिमा का व्रत किया लेकिन शायद किसी कमी की वजह से इस बार भी उसे मृत संतान हुई | वह बहुत दुखी हुई और रोने लगी | इसी समय उसकी बड़ी बहन उसके घर आयी तब उसने अपने मृत बेटे को पीढे पर लिटाकर उस पर कपडा बिछा दिया | और बहन को बैठने के लिए उसने वही पीढ़ा दे दिया |
जैसे ही उसकी बहन उस पर बैठने को हुई और उसका स्पर्श उस कपडे को हुआ तो उसमें से बच्चे के रोने की आवाज आने लगी | वह चौंक गयी और अपनी छोटी बहन से बोली की हे राम ये तुम क्या कर रही हो अपनी संतान पर मुझे बैठाकर उसके मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती हो | वह बोली नहीं दीदी यह संतान तो मरी हुई पैदा हुई थी लेकिन तुम्हारे प्रताप से ही यह जीवित हुई है | ऐसा कहकर उसने पुरे गाँव में पूर्णिमा के व्रत की महिमा सभी को बताई की किस तरह उसके बेटे की जान इस पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव से बची |
शरद पूर्णिमा पर महालक्ष्मी पूजन मन्त्र
सुरासुरेन्द्राकिरीटमौक्तिकै
यूर्कत्म सदा यत्तव पादपङ्कजम |
परावरं पातु वरं सुमङ्गलं
नमामि भक्त्यखिलकामसिद्धये ||
भवानी त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायनी ||
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मी ! नमोस्तु ते ||
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये |
या गतिस्त्वत्प्रपन्नां सा मे भूयात त्वदर्चनात ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान समर्पयामि |
शरद पूर्णिमा पर क्या ना करें
- शरद पूर्णिमा पर तामसिक भोजन मांसाहार, अधिक तेलयुक्त भोजन ना करें |
- भूलकर भी शराब आदि का सेवन ना करें |
- संयमित रहें |
- घर में गंदगी ना रहने दें |
स्मार्टपूजा के साथ करें शरद पूर्णिमा की पूजा
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