अन्नप्राशन संस्कार क्या है, पूजन सामग्री और संस्कार विधि
बालक के पैदा होने के साथ ही हिन्दू धर्म में उसके 16 संस्कारों के द्वारा उसके संस्कार किये जाते है | इन्ही 16 संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन संस्कार | हिन्दू धर्म में बच्चे को निश्चित समय तक केवल माँ के दूध को ही पीना चाहिए | इस बात को मेडिकल साइंस ने भी माना है की बच्चे को पैदा होने के बाद 6 महीने तक केवल माँ का दूध ही पिलाना चाहिए और 6 महीने के होने पर ही उसे अन्न खिलाना चाहिए | इसीलिए बालक जब 6 महीने के लगभग हो जाता है तो एक शुभ संस्कार किया जाता है जिसे की अन्नप्राशन कहते है |
अन्नप्राशन संस्कार क्या है
[contact-form-7 id="14022" title="Contact form 1"]जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तो उसकी पुष्टि के लिए उसे माँ के दूध के अलावा अन्न देना शुरू किया जाता है इस धर्म अनुष्ठान को अन्नप्राशन संस्कार कहा जाता है | इसी अवस्था के आसपास बालक के दांत निकलने लगते है | अन्न का शरीर से गहरा सम्बन्ध है और हर एक जीव का अधिकांश समय आहार की व्यवस्था में जाता है | जिस अन्न से हमारा जीवन भर जुड़ाव रहने वाला है वह संस्कारयुक्त हो इसलिए अन्नप्राशन किया जाता है जिससे एक अच्छे संस्कारयुक्त वातावरण में बालक के अन्नाहार की शुरुआत करने से वह स्वस्थ एवं बलवान बनता है |
हिन्दू धर्म के यजुर्वेद के 40 वे अध्याय का पहला मन्त्र है ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ जिसका अर्थ है त्याग के साथ भोजन करना | इसीलिए जब हम भोजन बनाते है तो उसमें गाय की रोटी, कुत्ते की रोटी, चींटियों के लिए आटा और मछलियों के लिए निकालकर भगवान को अर्पित करने के बाद भोजन सेवन करने को श्रेष्ठ माना जाता है | जब पहली फसल होती है तो फसल में से अन्न निकालकर ही उसे पहले धर्म कर्म में लगाया जाता है और उसके बाद ही खुद के उपयोग में लिया जाता है | त्याग के साथ अन्न प्राप्त करने की यह रीती सनातन काल से चली आ रही है |
अन्नप्राशन के लिए सामग्री
- यज्ञ पूजन सामग्री
- देवपूजन सामग्री
- चांदी की कटोरी
- चांदी की चम्मच
- तुलसीदल
- गंगाजल विधि
कर्मकांड की विधि
- पात्रपूजन
- अन्न-संस्कार
- विशेष आहुति
- क्षीर प्राशन
पात्र पूजन
बालक को जिस पात्र से अन्नप्राशन करवाया जाता है उस पात्र का शुद्ध होना बहुत ही जरुरी होता है क्योंकि एक कुसंस्कार युक्त पात्र यानि की गलत या गंदे पात्र में अगर किसी संस्कारयुक्त आहार को नहीं रखा जाना चाहिए | इसलिए बालक के अन्नप्राशन संस्कार में बच्चे को खीर चटाने के लिए चांदी के पात्र का उपयोग किया जाता है | चांदी को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और इसलिए पहले पात्र का पूजन किया जाता है |
पात्र पूजन विधि
सबसे पहले पात्र पर चन्दन या रोली से स्वस्तिक बनाएं और उस पर अक्षत और पुष्प अर्पित करें | साथ ही भगवान प्रार्थना करें की इन पात्रों में दिव्यता स्थापित हो और अन्न को दिव्यता प्रदान करें और उसकी रक्षा करें साथ ही निम्न मन्त्र का उच्चारण करें –
ॐ हिरण्मयेन पात्रेण, सत्यस्यापिहितं मुखम |
तत्वं पूषन्नपावृणु, सत्यधर्माय दृष्टये ||
अन्न संस्कार
शिशु के पैदा होने से लेकर अन्नप्राशन तक वह केवल दूध पर निर्भर रहता है | इसके बाद यह नहीं की उसे किसी भी तरह का आहार दे दिया जाये | उसे संस्कार में खीर इसलिए चटाई जाती है की वह पेय और खाद्य के बीच की स्थिति होती है | इसलिए जैसे जैसे बच्चा बढ़ता जाये और उसकी आयु और उम्र के अनुसार भोजन करना चाहिए |
खीर के साथ ही उसमें शहद, गंगाजल, घी मिलाया जाता है जो की पौष्टिकता, रोगनाशक गुणों परिपूर्ण होते है | खाद्य में जो भी वस्तुएं मिलाई जाती है उन्हें मंत्रोच्चार के साथ मिलाया जाता है | जिससे उनमे संस्कार, सद्भाव, सद्विचार और श्रेष्ठ संकल्प प्रवेश करें क्योकि अन्न और जल में भावनाओं को ग्रहण करने की क्षमता होती है |
अन्नप्राशन के लिए आवश्यकतानुसार ही खीर और अन्य वस्तुएं मिलानी चाहिए | अधिक लेने से इसका छोड़ना इसका तिरस्कार होता है | इसलिए खीर इतनी ही पात्र में लें की यज्ञ में आहुति देने के बाद केवल इतनी ही खीर बचे की बच्चे को चटाई जा सके |
पात्र में खीर के साथ शहद मिलाये और भावना करें की यह शहद और मधु उस खीर को स्वादिष्ट बनाने के साथ ही उसमें मधुरता उत्पन्न करें और बालक का आचरण वाणी और व्यवहार में मधुरता आये |
ॐ मधुवाता ऋतायते, मधुरक्षरन्ति सिन्धवः | माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः |
ॐ मधु नक्तमुतोषसो, मधुमत्पार्थिव रजः| मधुद्यौरस्तु नः पिता |
ॐ मधुमान्नो वनस्पतिः, मधुमाँ२sअस्तु सूर्यः | माध्वीर्गावो भवन्तु नः |
अब पात्र में घी डालें और मन्त्र के उच्चारण के साथ मिलाएं | यह घी बालक में रूखापन मिटाकर स्निग्धता देगा | यह घी बच्चे के मन में स्नेह, समरसता का संचार करेगा |
ॐ घृतं घृतपावानः, पिबत वसां वसापावनः | पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा | दिशः प्रदीशsआदिशो विदिश, उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ||
अब पात्र में नीचे दिया गया मंत्र बोलते हुए तुलसी डालें | तुलसी एक औषधि के सामान है और यह कई तरह के रोगों को नष्ट करने में अतिप्रभावकारी होती है |
ॐ या औषधि पूर्वाः जाता, देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा |
मनै नु बभ्रूणामः शतं धमानि सप्त च ||
अति पवित्र माना गया है यह खाद्य के सभी तरह की पापवृत्तियो को नष्टकरके उसमें संस्कार पैदा करता है | और इस तरह भिन्न भिन्न वस्तुएं मिलकर बालक को श्रेष्ठव्यक्तित्व , संस्कारवान, बुद्धिवान, बलवान बनाते है |
ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीम, अपि यन्ति सस्त्रोतसः |
सरस्वती तू पंचधा, सो देशेभवत्सरित ||
जब आप सारी वस्तुओं को मिला लें तो उस खीर को पूजा वेदी के सामने रख दें | अब आप यज्ञ में अग्नि स्थापित करने और उसमें गायत्री मंत्र की आहुतियां पूरी करें |
विशेष आहुति
गायत्री मन्त्र की आहुतियां पूरी होने के बाद तैयार खीर से 5 विशेष आहुति आपको देनी होती है और आहुति देते वक्त भगवान से प्रार्थना करें की वह भगवान को समर्पित होकर प्रसाद बने |
ॐ देविं वचमजनयन्त देवः, तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति |
सा नो मन्द्रेषमूर्ज दुहाना, धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु स्वाहा |
इदं वाचे इदं न मम |
अन्नप्राशन
जब आहुतियां पूरी हो जाएं तब बच्चे को चांदी की चम्मच या सिक्के से खीर खिलाए | इस तरह यह अन्नप्राशन संस्कार पूर्ण होता है | अन्न को यज्ञ की भावना से संस्कार शोधन करना महत्पूर्ण माना जाता है | गीता में भी कहा गया है की यज्ञ से बचा हुआ अन्न खाने से व्यक्ति ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है | इसलिए हमारे यहाँ कहा गया है जैसा खाओगे अन्न वैसा रहेगा मन | इसलिए अन्नप्राशन द्वारा बच्चे के पहले अन्न के ग्रास को शुद्ध और संस्कारयुक्त किया जाता है | इसलिए हिंदू संस्कारों में अन्नप्राशन एक जरुरी संस्कार बताया गया है |
निष्कर्ष
अन्नप्राशन पूजा एक जरुरी पूजा है और आपका शिशु संस्कार वान अच्छे व्यक्तित्व वाला और बलवान बने इसके लिए आपको अन्नप्राशन संस्कार पुरे विधि विधान से करवाना चाहिए | यदि आप सोच रहे है की अन्नप्राशन संस्कार की पूजा की व्यवस्था आप कैसे करेंगें तो परेशान ना हो | स्मार्टपूजा आपके लिए लेकर आया है वन स्टॉप समाधान | जहाँ एक ही जगह पर आप अन्नप्राशन पूजा के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त, पूजन सामग्री और पूजा के लिए पंडित बुकिंग ऑनलाइन या कॉल करके कर सकते है | तो निश्चिंत हो जाये और एक दिव्य पूजा द्वारा अपने बच्चे के संस्कार करें और श्रेष्ठ व्यक्तित्व के निर्माण की नींव रखे |